पटना : आखिरकार उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी दो भागों में बंट गई है। पार्टी के दो विधायक और एक विधानपार्षद ने आज पटना में संवाददातासम्मेलन कर खुद को असली रालोसपा बताया है। तीनों विधायकों और विधानपार्षदों नेपार्टी के चुनाव चिह्न पर भी दावा ठोंकने की बात कही है।

आज पटना में एक प्रेस कान्फ्रेंस कर रालोसपा के दोनों विधायक सुधांशु शेखर और ललन पासवान और विधानपार्षद संजीव श्याम सिंह ने इस बात की घोषणा की और कहा कि उपेंद्र कुशवाहाव्यक्तिगत राजनीति करते हैं और अब वो जहां जाना चाहें जाएं, हम एनडीए के साथ थे और एनडीए में ही रहेंगे।

रालोसपा विधायकों और विधानपार्षद ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा अब अपना निर्णय लें, बिहार के लोगों की जनभावना हमारे साथ है। रालोसपा नेताओं ने एनडीए नेतृत्व से आग्रह किया है कि हमें किसी बोर्ड या समिति में जगह नहीं मिली है। एनडीए नेतृत्व इसपर ध्यान दे।

उपेन्द्र कुशवाहा ने आगे की रणनीति तय करने के लिए रविवार को श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायी है। एनडीए से अलग होने के पहले उन्होंने वाल्मीकिनगर में ऐसी ही बैठक आयोजित कर कार्यकर्ताओं से विमर्श किया था। समझा जाता है कि कल की बैठक में वे महागठबंधन में शामिल होने से पहले कार्यकर्ताओं से बातचीत कर औपचारिकता पूरी करेंगे। बैठक में बागी विधायक सुधांशु कुमार की मौजूदगी की संभावना है।

बता दें कि रालोसपा के इन दोनों विधायकों ने उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए छोड़ने और लगातार एनडीए के खिलाफ बोलने से नाराज थे और कहा था कि हम एनडीए का ही हिस्सा रहेंगे। दोनों विधायक 27 नवंबर को बीजेपी विधानमंडल दल की बैठक में शामिल भी हुए थे, उसी वक्त से ये बात कही जा रही थी कि वो एनडीए के साथ ही रहेंगे, भले ही कुशवाहा ने एनडीए छोड़ दिया।

इससे पहले 10 नवंबर को इन्ही दोनों विधायकों के सीएम नीतीश कुमार से मिलने पर जदयू में भी जाने की भी बात कही जा रही थी। हालांकि दोनों विधायकों ने एनडीए में अपनी हो रही उपेक्षा का भी आरोप लगाया है।

हालांकि रालोसपा के एकमात्र सांसद रामकुमार शर्मा ने फिलहाल कुशवाहा के साथ रहने का संकेत दिया है, लेकिन एक दिसंबर को रालोसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगवान सिंह कुशवाहा ने भी कहा था कि कुशवाहा को एनडीए ने बहुत इज्जत दी है और उन्हें एनडीए में ही रहना चाहिए।

खुले अधिवेशन में नहीं शामिल हुए थे सांसद, विधायक और विधानपार्षद

गौरतलब है कि छह दिसंबर को मोतिहारी में आयोजित रालोसपा के खुले अधिवेशन में जिस तरह से उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के सांसद रामकुमार शर्मा, दोनों विधायक, सुधांशु शेखर और ललन पासवान और रालोसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगवान सिंह कुशवाहा नहीं पहुंचे थे और उनकी गैरमौजदूगी से ही लग रहा था कि रालोसपा टूट जाएगी। 

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